सुदरादई माता मुरिया जनजाति के लोग सेवा आरती करते है, Hinglaj Mata, मां दंतेश्वरी माता के पीछे पीछे वारंगल से आये और बड़ेकड़मा के पावन भूमि पर स्थापित हुये। गांव वाले पूजा आरती कर विश्वास होने के कारण हर साल गोंचा पर्व बजार मनाया जाता है जिसमें जात्रा भी आयोजित किया जाता है जिसमें बली के रूप में काला बकरा को देते है, और लाल बकरा खपर में दिया जाता है। जिससे गांव वाले को सुख समृधि की प्राप्ति होती है।
देवी Hinglaj Mata की कहानी
सूदराई माता के गोंचा पर्व के बाजार में आस पास के देव एवं छतर लाया जाता है जैसे चितापुर, मण्डवा, एरण्डवाल, दुगनपाल, आरापुर, परपा, राजूर, पाराकोट, राजूर, मंगनार एवं अन्य स्थानों ग्रामवासी के देवी देवता भी आतें हैं।
देवी की मान्यता :- यह गाँव की प्रमुख देवी है, इसके बिना अनुमती के गाँव में कोई त्यौहार, तीज, भेला, का आयोजन नहीं किया जाता है, जैसे नवा खाई, हरियाली ( अमुस), मेला ( मण्डई ) त्यौहार बनाने लिए पहले हिगलाजिन भौरिया माता गुड़ी में विशेष पुजा अर्चना कर देवी का आशिर्वाद लिया जाता है। तब जाकर गाँव में त्यौहार आदि मनाये जाते है । जब देवी का आशिर्वाद मिलने पर नियत तिथि को त्यौहार मनाते है । हमारे पूर्वज बताते है। जब आसपास कोई अस्पताल नही थे । गाँव में जब बीमारी का प्रकोप बड़ता था। तो गाँव वाले पूजा पाठ करते थे। तो बीमारी दूर होते थे। आज भी लोग जब किसी को माता (चेचक ) आता है। तो पुजारी से पुजा करवाते है। महामारी, के समय भी सभी गाँव वाले मिलकर पुजारी से पुजा करवाया था, बिना माता के अनुमती लिये अगर कोई कार्य करते हैं, तो गाँव में कुछ न कुछ अनहोनी होने का डर रहता है। पहले जब भी गाँव में बीमारी फैलती थी, तो लोगों का पुजा करवाने हेतु दिन भर लम्बी लाइने लगी रहती थी।
Chhattisgarh Hinglaj Mata Story Part – 1
Chhattisgarh Hinglaj Mata Story Part – 2
Bhui Phore Shivling निकला शिवलिंग 200 साल पुराना
गुड़ी में जो भी व्यक्ति आस्था रखकर सच्छे मन से पूजा अर्चना करवाता है। उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है । गाँव में एक पेड़ के नीचे पत्थर के शिला के रूप में विराजमान था, जो अब गाँव वाले ने मिलकर एक घर (गुड़ी) बनाकर उसमें स्थापित किए है। हिंगलाजिन भौरिया माता को गाँव में किसी ने नहीं लाये, वह अपने से प्रकट हुई है। कई पीढ़ी से गाँव में है, उतना तो जानकारी नहीं है लेकिन पूर्वजों के अनुसार लगभग १८०० ई० से गाँव में है । इनके पुजारी पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार से है पत्थर के शिला के रूप में स्थापित है । हाथी एंव घोड़ा की पूर्ति बाद में पुजारी द्वारा बनावाया गया है विशेष कर धुरवा जन जाति के लोगों के द्वारा पुजा जाता है। माता हिगलाजिन बस्तर दशहरा में अपने क्षतर के साथ जाती है।
पुजारी के द्वारा बताया गया, की जलनी माता देव को ग्राम टेमरूभाटा से हूंगा पिता तुला के द्वारा ग्राम कलेपाल में ले जाकर गांव में स्थापित किया गया। कलेपाल गांव पूर्व में वनक्षेत्र था, वन कटाई के समय हूंगा के पिता तुला के द्वारा जलनी माता को गांव में स्थापित कर बिठाया गया तब से जलनी माता की ग्राम में पूजा अर्चना करते है।
पुजारी के द्वारा बताया गया कि जलनी माता के प्रथम पुजारी गंगो पिता ठुनी के मृत्यु के बाद पुजारी बामन मण्डावी पिता गुजा बनाया गया। बामन मण्डावी के मृत्यु के बाद पुजारी हड़मा पिता गंगो पुजारी बनाया गया तब से गांव में जलनी माता की पुजा अर्चना हड़मा राम के द्वारा किया जा रहा है।
जत्रा मेला का आयोजन :- Hinglaj Mata
गांव मे हर वर्ष जात्रा मेला का आयोजन ग्रामीण द्वारा किया जाता है। जलनी माता के जात्रा के समय फूल माला धूप दीप जलाकर ग्राम के पुजारी लाल कपड़ा ओड़नी ओड़ाकर पूजा अर्चना करते हैं, जात्रा के समय ग्रामीण जलनी माता को बकरा, सुअर, मुर्गा आदि भेट कर बली देते है, और ग्रामीण जलनी माता देवी को मन्नत के अनुसार बकरा, सुअर, मुर्गा, महूआ का दारू भेट स्वरूप करतें है।
दंतेवाड़ा दंतेश्वरी मेला के समय में जलनी माता का छतर को दंतेवाड़ा दंतेश्वरी ले जाते हैं दंतेश्वरी मेला में छतर को परिक्रमा कर पांच दिनों के बाद जलनी माता का छतर गांव में वापसी किया जाता है।